बिहार की सियासी सरगर्मियाँ और विकास: 2025 की बड़ी खबरें
बिहार आज न सिर्फ चुनाव की ओर बढ़ रहा है, बल्कि राज्य में राजनीति, आर्थिक नीतियाँ, सामाजिक बदलाव और विकास योजनाओं में भी हलचल तेज हो चुकी है। 2025 का यह समय बिहार के लिए निर्णायक बन चुका है। नीचे हम देखेंगे उन बड़े घटनाक्रमों को, जो इस समय राज्य की दिशा तय कर सकते हैं।
1. विधानसभा चुनाव 2025: समय-सारणी और पृष्ठभूमि
2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में होंगे — 6 नवंबर और 11 नवंबर। परिणामों की गिनती 14 नवंबर को होगी।
इस बार कुल 243 सीटों पर दावेदारी होगी, और बहुमत के लिए 122 सीटों की ज़रूरत होगी।
पिछली सरकारों की अलोकप्रिय नीतियों, गठबंधन टूट-फूट, और नए दलों की एंट्री ने इस चुनाव को बहुत ही प्रतिस्पर्धात्मक बना दिया है।
2. गठबंधन और सीट-समझौता की जद्दोजहद
राजनीति की सबसे बड़ी लड़ाई फिलहाल गठबंधन और सीटों के बंटवारे की है। NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में BJP, JD(U), LJP (Ram Vilas) और अन्य घटक शामिल हैं।
BJP ने दिल्ली में एक अहम बैठक की, जहां पार्टी की उम्मीदवार सूची और गठबंधन के समीकरणों पर चर्चा हुई।
सूत्रों की मानें तो JD(U) को लगभग 101–102 सीटें और BJP को लगभग उतनी ही या कम दी जाएंगी।
वहीं LJP (RV) की दावेदारी 40 सीटों की है, जबकि BJP ने पहले लगभग 25 सीटों का प्रस्ताव दिया था — इस पर विवाद खड़ा हो गया है।
इसी बीच, कांग्रेस ने “बीस साल — विनाश काल” नामक चार्जशीट जारी कर वर्तमान सरकारों की नीतियों पर हमला बोला है। ते जस्वी यादव ने कहा: “उम्र कच्ची है, पर ज़बान पक्की।”
गाँधीवादी विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए, यह आरोप लगाते हुए कि कुछ योजनाएँ चुनाव से ठीक पहले घोषित कर दी गई हैं।
3. राजनीति में नए चेहरे और रणनीतियाँ
1.राजनीति में सिर्फ पुराने दल ही नहीं, नए खिलाड़ी भी अब मैदान में उतर रहे हैं:
2.प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी Jan Suraaj के ज़रिए बिहार में सक्रिय कदम रखा है। उन्होंने राघोपुर में जाकर दावा किया कि वर्तमान विधायक ने किसी विकास का काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि “लोगों का गुस्सा” विधायक को डरना चाहिए, न कि विपक्ष को।
3.इस वक्त मोकामा सीट पर एक दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है — अनंत सिंह वर्सेस सूरजभान सिंह की “2000 सीरीज़” नई हो रही है।
4.लोक गायिका मैथिली ठाकुर ने राजनीति में कदम रखने के संकेत दिए हैं। वे मधुबनी जिले से चुनाव लड़ सकती हैं।
4. जाति, धर्म और मतदाताओं का सन्दर्भ
1.राजनीति केवल दलों और उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि समाज की धाराओं की भी तरह बदल रही है:
2.RJD ने ‘भूमिहार और कुशवाहा समुदायों’ को जोड़ने की रणनीति अपनाई है, जिससे पार्टी अब “A से Z” यानी सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देना चाहती है। इस कदम ने अंदरूनी असंतोष भी बढ़ाया है, और कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ने की नौबत तक आ गई है।
3.सीमान्चल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार आदि) में बड़ी मुस्लिम आबादी है, जो बंगाली भाषा बोलने वालों की है। वहां “बांग्लादेशी घुसपैठिए” जैसे आरोप राजनीतिक भाषा बनते जा रहे हैं।
4.बहुसंख्यक जातीय समुदायों को साधने की कोशिश अब लगभग हर दल कर रहा है — इसलिए यह चुनाव जातिगत समीकरण को तोड़ने या फिर उसे फिर से मजबूत करने की लड़ाई भी है।
5. विकास और आधारभूत सुविधाएँ
1.राजनीति जितनी जोर-शोर से चल रही है, विकास का एजेंडा भी पीछे नहीं है:
2.पटना मेट्रो का पहला स्टेश़न Zero Mile 6 अक्टूबर 2025 को सार्वजनिक हो गया है। यह ब्लू लाइन का हिस्सा है और यह 3.6 किलोमीटर की ऊँची ट्रयाक पर चलते हुए कई इलाकों को जोड़ेगा।
3.सरकार ने सीतामढ़ी जिले के पुनौरा धाम में जानकी जन्मस्थली मंदिर और इसके चारों ओर तीर्थयात्रा सुविधा विकसित करने की योजना बनाई है। इस योजना के लिए लगभग ₹882.87 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
इन परियोजनाओं का उद्देश्य धार्मिक पर्यटन को बढ़ाना, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करना है।
6. बिहार विकास: आगे की चुनौतियाँ
1.विकास योजनाएँ भली हों, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन ज़रूरी है। बिहार अभी भी पिछड़े राज्यों की श्रेणी में है:
2.एक बड़े आर्थिक लेख में कहा गया है कि बिहार आज भी “BIMARU” राज्यों की श्रेणी में है — विकास दर, औद्योगीकरण, वैयक्तिक आय और अवसंरचना में पिछड़ापन देखना पड़ा है।
3.शिक्षा और कौशल विकास की कमी, युवाओं का पलायन, स्वास्थ्य सेवाओं की दूरदशा — ये सभी मुद्दे हैं जिन्हें नए सरकार को प्राथमिकता देनी होगी।
4.विकास के प्रस्ताव जितने भव्य हों, उनका सामाजिक स्वीकृति और पारदर्शिता उतनी ही ज़रूरी है — योजनाओं का लाभ सभी तक पहुंचना चाहिए न कि कुछ विशेषों तक ही सीमित रह जाना चाहिए।
7. भविष्य की राह: जनता क्या देखना चाहती है?
1.चुनाव की सरगोर्मियों के बीच, जनता की उम्मीदें भी कहीं न कहीं नीतियों से जुड़ी हैं:
2.रोजगार: हर परिवार को नौकरी देने जैसे वादों को जनता ध्यान से देख रही है। एनडीए और विपक्षी दलों के इस केन्द्र में नौकरी वादे अब कल की राजनीति नहीं, बल्कि आज का महत्व बन गए हैं।
3.भ्रष्टाचार और पारदर्शिता: चार्जशीट्स, आयोग पर सवाल, और झूठे वादों की लड़ाई — ये सब दर्शाते हैं कि जनता सरकार की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही चाहती है।
4.सामाजिक समरसता: जातिगत राजनीति, धार्मिक ध्रुवीकरण, और अल्पसंख्यक सवाल बिहार के लिए चुनौतियाँ रही हैं। कोई भी सरकार इन मुद्दों को अनदेखा नहीं कर सकती।
5.विकास का जमीनी असर: मेट्रो हो, मंदिर हों या सड़क सुधारें — जनता देखेगी कि इन योजनाओं का उनका जीवन स्तर कितना सुधारता है।
निष्कर्ष
2025 का बिहार चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं है — यह राज्य की दिशा, पहचान और विकास का फैसला है।
नए दलों की एंट्री, गठबंधन बनाम टूट, जातिगत समीकरण और विकास योजनाएँ — हर मोर्चे पर निर्णायक लड़ाई चल रही है।

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